Sunday, October 18, 2009

Divorce letter of the year!



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दर्द नशा है इस मदिरा का, विगत स्मृतियां साक़ी है, पीड़ा में आनन्द जिसे हो, आये मेरी मधुशाला/
लालाइत अधरों से जिसने हाय नहीं चूमी हाला,हर्श विकँपित करसे जिसने हाय न छुआ मधु का प्याला/
हाथ पकड़ लज्जित साक़ी का, पास नहीं जिसने खींचा, व्यर्थ सुखा डाली जीवन की, उसने मधुमय मधुशाला/
एक बरस में, एक बार ही, जगती होली की ज्वाला; एक बार ही लगती बाज़ी, जलती दीपों की माला/
दुनिया वालों किन्तु किसी दिन आ मदिरालय में देखो, दिन को होली, रात दिवाली, रोज़ मनाती मधुशाला/


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