Tuesday, July 16, 2013

हैरी की लेखनी से !

'विद्या'
परदे में है चाहत , पूरा छुपता भी नहीं, साफ़ दीखता भी नहीं,
या तोह पर्दा हटा ले, या फिर चेहरा ही दिखा दे,
चाहते दीदार करा दे, वर्ना चाहत को ही मिटा दे,
मिट के हम कण कण में बिखर जायेंगे,
इस समस्त संसार को तेरा दीवाना बना जायेंगे,
दीवानगी तोह बहुत देखि होगी तूने,
तेरी महमिल में दीवानों का कारवां लगा जायेंगे,
हम गीली लकड़ी ही सही, पर ऐय 'विद्या',
लाखों के दिलों में, तेरे लिए, ज्ञान की ज्योत जला जायेंगे !

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हैरी द्वारा छोटी से भेंट ( मेरी पहली कोशिश- दनांक १५ जुलाई २०१३ )

हैरी की लेखनी से !

चाहत होनी चाहिए

एक कविता छन में चिंगारी बन सकती है,
एक फूल सपनो को जगा सकती है,
एक पेड़ , जंगल बना सकता है ,
एक चिड़िया बसंत को ला सकती है ,

एक मुस्कराहट दोस्ती की शुरुआत कर सकती है,
एक वंदना , आत्मा को जागृत कर सकती है,
एक तारा , जहाज को रास्ता बता सकता है ,
एक शब्द आपका लक्ष्य तय कर सकती है,

एक मत , देश को बदल सकता है ,
एक किरण , वीराने में उजाला कर सकती है ,
एक मोमबत्ती , अँधेरे को दूर कर सकती है ,
एक मुश्कुराहत , उदासी पे विजय पा सकती है,

एक कदम चाहिए यात्रा की शुरुआत के लिए,
एक शब्द चाहिए वंदना की शुरुआत के लिए ,
एक अभिलाषा चाहिए , आत्मा को जगाने के लिए,
एक स्पर्श चाहिए , प्यार को जताने के लिए,

एक आवाज चाहिए बुद्धिमत्ता को जगाने के लिए,
एक दिल चाहिए सच्चाई को जानने के लिए,
एक जिन्दगी बदल सकती है, परिणामो को
और यह सब निर्भर करता है, hello "आप पे"

हैरी द्वारा दूसरी कृति - दिनांक १६ जुलाई २०१३