Tuesday, January 21, 2014

चलो ख्वाबों में एक ख्वाब देखें...

चलो ख्वाबों में एक ख्वाब देखें,
क्या ख्वाब एक, ख्वाब दो के अंदर है ,
या दूसरा, तीसरे के अंदर है,
क्या कोई चौथा ख्वाब, कहीं जनम ले रहा है,
मैंने अनगिनत ख्वाब देखे है, ख्वाबों के एक बगीचे में,
हर एक ख्वाब में असीम सकती होती हैं , नए ख्वाबों को जनम ने में,
अधूरा ख्वाब, सुलगता ख्वाब, उबलता ख्वाब , ख्वाब ही ख्वाब,
क्या यह हमारे ख्वाबों से परे है, या ख्वाबों में हकीकत से परे है,
क्यूँ ख्वाब रुलाती है हमें , बिना बात के हसाती है हमें,
निरंतर तड़पाती है हमें, सोई रातों से जगाती है हमें,
हाय रे ख्वाब , वाह रे ख्वाब, ख्वाब ही ख्वाब !


By Harry
Source : Written by Harry

'विद्या'

'विद्या'
परदे में है चाहत , पूरा छुपता भी नहीं, साफ़ दीखता भी नहीं,
या तोह पर्दा हटा ले, या फिर चेहरा ही दिखा दे,
चाहते दीदार करा दे, वर्ना चाहत को ही मिटा दे,
मिट के हम कण कण में बिखर जायेंगे,
इस समस्त संसार को तेरा दीवाना बना जायेंगे,
दीवानगी तोह बहुत देखि होगी तूने,
तेरी महमिल में दीवानों का कारवां लगा जायेंगे,
हम गीली लकड़ी ही सही, पर ऐय 'विद्या',
लाखों के दिलों में, तेरे लिए, ज्ञान की ज्योत जला जायेंगे !


By Harry
Source : written by harry

एक तो वक्त कम है...

एक तो वक्त कम है, दूसरे जेब भी तंग है,
इंसानियत परेशां है, फिर भी दीखता दबंग है,
दीवाने मलंग है, सर्कार अपंग है और  विरोधी तंग है,
फिर भी सबके बीच में ये कैसी सत्संग है,
९५ प्रतिसत जनता, सोई हुई अंग है,
इसीलिए तो ५ प्रतिसत लोग शाशन में रंगारंग है,
मोहे रंग दे, ऐसा सभी का ढंग है,
फिर भी दीखता, कटी पतंग है,

कविता पढ़नेवाला दंग है और कवी कि लेखनी में व्यंग है !
हैरी द्वारा प्रस्तुत !
९.३० PM तारीख २१ जनुअरी २०१४