Tuesday, January 21, 2014

एक तो वक्त कम है...

एक तो वक्त कम है, दूसरे जेब भी तंग है,
इंसानियत परेशां है, फिर भी दीखता दबंग है,
दीवाने मलंग है, सर्कार अपंग है और  विरोधी तंग है,
फिर भी सबके बीच में ये कैसी सत्संग है,
९५ प्रतिसत जनता, सोई हुई अंग है,
इसीलिए तो ५ प्रतिसत लोग शाशन में रंगारंग है,
मोहे रंग दे, ऐसा सभी का ढंग है,
फिर भी दीखता, कटी पतंग है,

कविता पढ़नेवाला दंग है और कवी कि लेखनी में व्यंग है !
हैरी द्वारा प्रस्तुत !
९.३० PM तारीख २१ जनुअरी २०१४

No comments:

Post a Comment