Tuesday, July 16, 2013

हैरी की लेखनी से !

'विद्या'
परदे में है चाहत , पूरा छुपता भी नहीं, साफ़ दीखता भी नहीं,
या तोह पर्दा हटा ले, या फिर चेहरा ही दिखा दे,
चाहते दीदार करा दे, वर्ना चाहत को ही मिटा दे,
मिट के हम कण कण में बिखर जायेंगे,
इस समस्त संसार को तेरा दीवाना बना जायेंगे,
दीवानगी तोह बहुत देखि होगी तूने,
तेरी महमिल में दीवानों का कारवां लगा जायेंगे,
हम गीली लकड़ी ही सही, पर ऐय 'विद्या',
लाखों के दिलों में, तेरे लिए, ज्ञान की ज्योत जला जायेंगे !

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हैरी द्वारा छोटी से भेंट ( मेरी पहली कोशिश- दनांक १५ जुलाई २०१३ )

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